कपास की फसल को कई प्रकार के अजैविक एवं जैविक कारक प्रभावित करते है, अजैविक कारक जैसे तापमान, आर्द्रता’, वर्षा की मात्रा, हवा आदि। जैविक कारक जैसे कीट, व्याधि एवं खरपतवार कपास के उत्पादन को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते है। अकेले कीटो के द्वारा फसल में लगभग 20 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाया जाता है। कपास में लगने वाले कीटो को मुख्य रूप से दो श्रेणी रस चूसक एवं टिण्डा छेदक में रखा गया है। कपास की फसल में रस चूसक कीट जैसे हरा तेला, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, चैपा एवं मिली बग तथा टिण्डा छेदक कीट जैसे तम्बाकू सूण्डी, चितकबरी सूण्डी, हरी सूण्डी व गुलाबी सुण्डी का प्रकोप मुख्य रूप सें होता है। जैसे-जैसे बी.टी. कपास के उत्पादन का प्रचलन बढ़ता गया, टिण्डा छेदक कीटों का प्रकोप कम होने लगा। परन्तु इसके विपरीत रस चूसक कीट जैसे सफेद मक्खी व थ्रिप्स का प्रकोप बढ़ने लगा। वर्तमान में सफेद मक्खी इस फसल को अत्यधिक क्षति पहुँचाने वाले कीट के रूप में देखी गई हैं। उपयुक्त समय पर इस कीट का प्रबंधन नही कर पाने से फसल में लगभग 30 - 35 प्रतिशत तक क्षति हो सकती है।
सफेद मक्खी (बेमीसिया टेबेसी) यह सफेद हल्के पीला रंग का 2 मि.मी. आकार का कीट है जिसका वयस्क पंख सहित, अवयस्क (निम्फ) जू की शक्ल के पंख रहित होते है।
सफेद मक्खी के क्षति के लक्षण यह पत्तियों की निचली
सतह से रस चूसती है। साथ ही शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ
छोड़ती है, जिसके ऊपर काले रंग का कवक उत्पन्न हो जाता
जो पत्तियों को काला कर देता है। अधिक प्रकोप होने पर
पत्तियाँ राख के रंग की एवं तेलिय दिखाई देती है। यह कीट
विषाणुजनित रोग पत्ती मरोड़क भी फैलता है। यह कीट माह
जुलाई से मध्य सितम्वर तक अधिक सक्रिय रहता है।
सफेद मक्खी के प्रबंधन की उचित कार्ययोजना
1- फसल की किस्म व संकर बी.टी. का चयन :- देसी कपास सफेद मक्खी एवं पत्ती मरोडक रोग के प्रति
प्रतिरोधक होती है। अतः वर्तमान परिस्थिति से उभरने के लिए देसी कपास की किस्मों जैसे आर.जी.-8, आर.जी.--542 एवं एच.डी.- 123 की बुवाई करे।
* बी.टी. कपास की केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान,
नागपुर एवं कृषि अनुसंधान केन्द्र, श्रीगंगानगर द्वारा सुझायी
गई संकर किस्में जैसे . :-- 846-2 बी.जी.-ii , 841-2 बी.जी. ii,
जैड.सी.एच.-1101 (सिघंम), जैड.सी.एच.-1102 (जुहारी मिलखा),
6317-2 बी.जी.- ii , 6488-2 बी.जी. ii , बायो—2510 बी.
जी. Ii , बायो.--2113-2 बी.जी.- ii, जैड,सी.एच.-904 (रजत),
एन.सी.एस.--858 बी.जी.--ii, आर.सी.एच.--650 बी.जी.-ii , एम.
आर.सी.—4744 बी.जी. ii, वी.सी.एच.- 1532 , एस.डब्ल्युसी.एच.
-4744, ए.बी.सी.एच.--243, ए.बी.सी.एच.-243, सुपर-971, वी.
सी.एच.-1518, पी.आर.सी.एच.--302, एस.डब्ल्युसी.एच.-4707,
एस.आर.सी.एच.--666, आर.सी.एच.--776, आर.सी.एच.-314, एन.
सी.सी.एच.--0316, एन.सी.एस.--.855, पी.आर.सी.एच.--7799, एस.
डब्ल्यु.सी.एच.-4704, आर.सी.एच.--773, एन.सी.एसं.-9002, पी.
सी.एच.--9604, बायो.--6539-2 की समय पर बिजाई कर सफेद
मक्खी एवं पत्ती मरोडक रोग से काफी हद तक बचाव किया
जा सकता है।
प्रभावी कीट प्रबंधन विधियो का उपयोगः
* सफेद मक्खी की फरवरी माह से ही परपोषी पौधो जैसे
सब्जियो, फूल वाले पौधों व खरपतवारो पर जॉच-पड़ताल करते
रहे तथा उसका प्रबंधन करे।
* सफेद मक्खी के आरम्भिक प्रकोप की रोकथाम के लिए
नरमें के एक किलो बीज को 4.0 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू
एस. या 5.0 ग्राम थायोमिथाग्जाम 70 डब्ल्यूएस. से उपचारित
कर बिजाई करने से सफेद मक्खी व पत्ती मरोडक रोग का
प्रकोप कम किया जा सकता है।
* बिजाई से 60 दिन तक सफेद मक्खी के प्रारम्भिक प्रकोप
से बचाव हेतु नीमयुक्त कीटनाशकों का उपयोग करे।
* फसल में सफेद मक्खी की जॉच-पड़ताल काश्तकारों द्वारा
बिजाई करने के 30 दिन से शुरू कर प्रत्येक सप्ताह में कम से
कम दो बार अवश्य करते रहना चाहिए तथा इस कीट की संख्या
आर्थिक हानि स्तर (ई.टी.एल.) 8-12 वयस्क या 16-20 अवयस्क
प्रति पत्ती दिखाई देने पर कीटनाशकों का छिड़काव कर देना
चाहिए।
सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए अगरलिखित कीटनाशको का उपयोग करे
क्रम संख्या | कीटनाशक का नाम | मात्रा (ग्राम/मि.ली.प्रति लीटर पानी) |
---|---|---|
1 | निम्बेसिडिन +तरल साबुन | (5.0 मि.ली.+ .0 मि. ली.) प्रति लीटर पानी |
2 | तिल का तेल +तरल साबुन | (12.50 मि.ली.+ .0 मि.ली.) प्रति लीटर पानी |
3 | डाईफेन्थूरॉन 50 डब्ल्यू पी. | 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी |
4 | स्पाइरोमेसिफेन 150 ओ.डी. | 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी |
5 | फ्लोनिकामाइड 50 डब्ल्यूजी. | 0.8 ग्राम प्रति लीटर पानी |
6 | थायोमेथोग्जाम 25 डब्ल्यूजी | 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी |
7 | ट्राइजोफॉस 40 ई.सी. | 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी |
8 | इथियॉन 50 ई.सी. | 2.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी |