गुलाबी सुंडी नरमा-कपास का हानिकारक कीट

गुलाबी सुंडी की पहचान

प्रौढ़ अवस्था में कीट आकार में छोटे व रंग में गहरे भूरे होते हैं। इनकी अगली पंखों पर काले धब्बे होते हैं तथा पिछली पंख किनारों से झालरनुमा होती हैं। रात को सक्रिय रहने वाला कीट है, नमी के वातावरण में यह बहुत एक्टिव हो जाता है,और फसल की अन्तिम अवस्था तक बना रहता है। प्रत्येक वर्ष नरमा के खेत में फूल आने के समय इसकी मादा पतंगों की पहली पीढी फुलगुड्डी पर या फिरॢ उनके नजदीकी टहनियों, छोटी व नई पत्तियों के निचले हिस्सों पर एक एक करके सफेद व चपटे अंडे देती हैं। इसके बाद वाली पीढियां अपने अंडे एक-एक करके ही फूलों के बाह्यपुंजदल पर देती हैं। सामान्यतौर पर 3 से 4 दिनों में इन अंडों से छोटी सूंडियाँ निकलती हैं, पर तापमान व नमी की अनुकूलता अनुसार यह अंड-विस्फोटन में समय अन्तराल भी हो सकता है। प्रारम्भिक अवस्था में ये सूंडियाँ हल्के सफेद रंग की होती हैं परन्तु बाद में इनका रंग गुलाबी हो जाता है जिसकी वजह से इसका नाम गुलाबी सुंडी पड़ा है। ये सूंडियां कपास की फसल में फूलगुड्डीयों व फूलों पर हमला करती हैं,ओर फूल के अंदर घुसती है,ओर वहीं रहने लगती हैं। सूंडियों से ग्रसित फूल के हिस्से आपस में जुड़ जाते है और पूरी तरह नही खुलते। कपास के ये ग्रसित फूल बनावट में फिरकी या गुलाब के फूल जैसे हो जाते हैं। शुरुआती अवस्था में ही ये छोटी सूंडियां छोटे-छोटे टिंडों में घुस कर कच्चे बिनौले (बीजों) को खाती हैं। टिंडे में घुसने के बाद ये अपने द्वारा बनाएं अपने सुराख को अपने मल से ही बंद कर देती है,जिससे इन पर किसी कीटनाशक का असर नही भी नही होता है,ओर इससे एक समस्या ओर है की जो छेद बंद किया जाता है उसमे फंगस का आक्रमण भी हो जाता है और समस्या दोगुनी हो जाती है।

गुलाबी सुंडी का प्रबंधन

1. गुलाबी सुंडी से बचाव के लिए छोटी अवधि की जल्दी तैयार होने वाली किस्मों का ही चयन करें, बिजाई अगेती (15अप्रैल से 30अप्रैल) और सामूहिक करने की कोशिश करे, लम्बी अवधि वाली कपास की किस्में और पिछेती बुआई गुलाबी सुंडी के लिए बहुत आदर्श हैं क्योंकि पिछेती फसल में फुल व टिण्डा लेट आता
2. गुलाबी सुंडी के प्रबंधन में सबसे महत्वपूर्ण कार्य पुरानी बीटी नरमा की लकड़ियां या जिनको बनस्टृी कहा जाता है उन्हें बिल्कुल खेत के आसपास भी ना रहने दें, क्योंकि इन लकड़ियों में अभी भी गुलाबी सुंडी के अंडे, लार्वा और वयस्क मौजूद हैं अगर आप इन्हें हटा नहीं सकते हैं तो इनके ऊपर पालिथीन या मच्छरदानी से ढक दें नही तो इन्हे सीधे खड़ी कर दें,ताकि इनको सीधे धूप लगे और पतंगे मर जाएं।
3. बुआई के समय पौधे से पौधे व लाइन से लाइन के बीच की दूरी ज्यादा रखें। (3.5 से 4 फुट के बीच लाइन से लाइन, पौधे से पौधे के बीच 2 से 2.5 फुट), इससे हवा का संचार अच्छा तथा स्प्रे करना आसान रहता है। बिजाई पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर करना फसल के लिए आदर्श है।
4. नरमा कपास का भंडारण किसी बंद कमरे में एलुमिनियम फाॅस्फाइड की एक या दो गोलियां डालकर करें ताकि इसके अंदर के गुलाबी सुंडी के पतंगे मर जाएं।
5. नियमित रूप से गहरी जुताई करने से गुलाबी सुंडी के अंडे और लार्वा का नियंत्रण करने में मदद मिलती है।
6. फसल में संतुलित उर्वरक व सिंचाई प्रबन्धन करना चाहिये। क्योंकि गुलाबी सुंडी नमी और तापमान के प्रति बहुत संवेदनशील होती है, आदर्श नमी और 27 से 30 डिग्री के तापमान में यह का जीवन चक्र आसानी से पूरा करती है जब तापमान 37 डिग्री से ऊपर चला जाता है तथा नमी कम होती है तो इसका जीवन चक्र पूरा नही हो पाता है।
7. बुआई के दौरान खेत के चारों ओर एक या दो लाइन नॉन बीटी नरमा या अरहर या रिफ्यूजी बीज खेत के चारों तरफ लगाने से गुलाबी सुंडी के प्रबन्धन में आसानी रहती है।
8. आर्थिक क्षति स्तर के आधार पर कीट नाशको का स्प्रे करें। आर्थिक क्षति स्तर की पहचान के लिए 2-3 फेरोमेन ट्रैप (ये एक सेक्स हार्माेन के साथ लगाया जाता है जिनपर नर सुंडी आकर्षित होकर फस जाती है और मादा को नर न मिलने से प्रजनन भी रुक जाता है), प्रति एकड़ लगाएं, नियमित जाँच कर आर्थिक नुकसान का स्तर की पहचान के लिये खेत में कपास की फसल से रैन्डम पद्धति (खेत के हर हिस्से से) से 20 फूलों के नमूने लें और यदि उन 20 नमूनों में से 2 या 3 या अधिक फूल मुरझाए हुए या जुड़े हुए हों अथवा टिण्डों में छेद नजर आए या उस पर काला रंग दिखे तो आपको सावधान रहना पड़ेगा। जब फेरोमेन ट्रेप में गुलाबी सुंडी के पतंगों की 3 दिन रोजाना की संख्या 8 से अधिक हो तो आर्थिक नुकसान का स्तर पार हो चुका है,उस समय कीटनाशकों का छिड़काव करें।

कीटनाशक का प्रबंधन व प्रयोग

1. कीटनाशक का छिड़काव सुबह 11 बजेे से पहले या शाम 5 बजे के बाद ही करें, दोपहर को यह पतंगे सक्रिय नहीं होते हैं जिससे इनको नुकसान नहीं पहुंचता है
2. कीटनाशकों के प्रयोग के समय किसी भी स्टिकर का प्रयोग अवश्य करें, इससे कीटनाशक की क्षमता बहुत बढ़ जाती है, स्प्रे के दौरान या स्प्रे करने के 8 से 12 घंटे के अंदर बारिश आ जाए दोबारा कीटनाशक का प्रयोग करें।

छिड़काव का समय कीटनाशक का नाम मात्रा/एकड़/लीटर विवरण
प्रथम छिड़काव (60 दिन की फसल अवस्था तक) नीम का तेल 5 एम एल प्रति लीटर पानी 150 से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें।
द्वितीय छिड़काव (61 से 120 दिन की फसल अवस्था तक) प्रोफेनोफास 50 ई.सी.
ईमामेक्टिन बेंजोएट 5 एस.जी.
क्यूनालफाॅस 20 एएफ
थायोडिकार्ब 75 डब्ल्यूपी
500 से 800 मिलीलीटर
100 ग्राम
500 से 900 मिलीलीटर
225 से 400 ग्राम
इनमे से किसी को भी चुन कर 150 से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें।
तृतीय छिड़काव (121-150 दिन की फसल अवस्था तक ) इथियान 20 ई.सी.
फेनवलरेट 20 ई.सी.
साइपरमैथरीन 25 ई.सी.
लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 5 ई.सी.
डेल्टामथ्रीन 2.8 ई.सी.
800 मिलीलीटर
100 -200 मिलीलीटर
80 से 100 मिली लीटर
200 मिलीलीटर
100 से 200 मिलीलीटर
इनमे से किसी को भी चुन कर 150 से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें।

**इसके अलावा जैविक प्रबंधन में, नरमा की बुआई के 90-120 दिन के बीच में अण्डा परजीवी ट्राईकोग्रामा परजीवी के 60000 अण्डे प्रति एकड़ के हिसाब से छोड़ें तथा कीटनाशक का प्रयोग सावधानी पूर्वक तथा दो कीटनाशक मिलाकर छिड़काव नहीं करें।
**मास ट्रैपिंग के लिए आप 1 एकड़ में 8 से 10 फेरोमोन ट्रैप भी लगा सकते हैं यह निगरानी के साथ-साथ बचाव का कार्य करेगा।
संकलन व लेखन
डॉ. कुलदीप सिंह, विषय विशेषज्ञ (प्रसार शिक्षा)