श्रीगंगानगर खण्ड में नरमा कपास खरीफ की एक मुख्य रेशे वाली फसल है। कपास के कुल क्षेत्रफल के 80 प्रतिशत में नरमा कपास की बिजाई की जाती है। नरमा कपास की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत कृषि विधियों को अपनाना आवश्यक है।
आर.एस.2013: इस किस्म के पौधों की ऊँचाई 125 से 30 सेमी, होती है। इसकी पत्तियां मध्यम आकार की व हल्के हरे रंग की होती है । इसके फूलों की पंखुड़ियों का रंग पीला होता है। इस किस्म में 2-3 एकांक्षी शाखाएं तथा अन्य फलवाहिनी शाखाएं होती है । फसल 140-170 दिन में पककर तैयार हो जाती है । इस किस्म में सुण्डी द्वारा हानि अन्य किस्मों से अपेक्षाकृत कम होती है । यह किस्म पत्ती मरोड़ विषाणु बीमारी के प्रति भी मध्यम अवरोधी है । इस किस्म की औसत उपज लगभग 23-24 क्विंटल प्रति हैक्टर है। आर एस. 2013 किस्म जहां सिंचाई ज्यादा उपलब्ध है, दूसरी किस्मों से ज्यादा फलन देता है। सेम क्षेत्रों के लिए आर एस, 2013 अच्छी पैदावार देने वाली किस्म है । जिस क्षेत्र में पानी सतह से 125-175 सेमी के मध्य है तीन सिंचाई (45 दिन + फूल आने पर + टिण्डा बनते समय) पर्याप्त हैं।
आर.एस.810 इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 125-130 सेमी होती है । फूल पीले रंग के होते हैं। टिण्डे का आकार छोटा (2.50-3.50 ग्राम) रेशे की लम्बाई 24-25 मिलीमीटर व ओटाई क्षमता 33-34 प्रतिशत होती है। यह किस्म 165-175 दिन में पककर तैयार व 23-24 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज/पत्ती मोड़क रोग प्रतिरोधी है।
आर, एस टी. 9 इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 130 से 140 सेमी पत्तियां हल्के रंग की होती हैं एवं फूल हल्के पीले रंग के होते हैं । चार से छः एकांक्षी शाखाएं होती है। टिण्डे का आकार मध्यम (औसत वजन 3. 5 ग्राम) होता है । फसल 60 से 200 दिन में पक कर तैयार हो जाती है । तेला (जेसिड) से इस किरम में अपेक्षाकृत कम हानि होती है । इस किस्म की ओटाई प्रतिशत भी अन्य अनुमोदित किस्मों से अधिक है। बीकानेरी नरमा इस किस्म के पौधे लगभग 135 से 165 सेमी, (साढ़े पांच फीट) ऊंचे पत्तिया छोटी, हल्के हरे रंग की एवं फूल छोटे हल्के पीले रंग के होते हैं तथा चार से छ: एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं । टिण्डे का आकार मध्यम (औसतन वजन 2ग्राम) होता है। फसल 160 से 200 दिन में पककर तैयार हो जाती है। तेला (जेसिड) से इस किस्म में अपेक्षाकृत कम हानि होती है आर. एस. 875 इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 100-110 सेमी. पत्तियां चौड़े आकार एवं गहरे हरे रंग की होती है। शून्य (जीरो) से एक एकांक्षी शाखाएं पायी जाती है। टिण्डे का आकार मध्यम, औसत वजन 3. 5 ग्राम, रेशे की लम्बाई 27 मिलीमीटर व तेल की मात्रा 23 प्रतिशत है, जो अनुमोदित किस्मों से अधिक है। इस किस्म की फसल 50 से 60 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जिससे उसी खेत में सामान्य समय पर गेहूं की बुवाई की जा सकती है।मरू विकास (राज, एच.एच. 6) इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 100-110 सेमी. पत्तियां चौड़े आकार एवं गहरे हरे रंग की होती है। शून्य (जीरो) से एक एकांक्षी शाखाएं पायी जाती है। टिण्डे का आकार मध्यम, औसत वजन 3. 5 ग्राम, रेशे की लम्बाई 27 मिलीमीटर व तेल की मात्रा 23 प्रतिशत है, जो अनुमोदित किस्मों से अधिक है। इस किस्म की फसल 50 से 60 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जिससे उसी खेत में सामान्य समय पर गेहूं की बुवाई की जा सकती है।
फसल चक्र
1. गेहूं - नरमा 2. ग्वार - पड़त – नरमा 3. चना - नरमा 4. पड़त - नरमा
खेत का चुनाव
नरमे की खेती के लिए मध्यम किस्म की भूमि अधिक उपयुक्त रहती है। बिलकुल रेतीली भूमि इसके लिए अच्छी नहीं रहती जिन खेतों में पानी भरे रहने और क्षारीयता की समस्या है, उनमें नरमा नहीं बोना चाहिए
खेत की तैयारी
जो खेत नरमे के लिए पड़त रखे गये हैं उनकी तैयारी पिछली फसल काटते ही शुरू कर देनी चाहिए । गेहूं के बाद नरमा लेने के लिए गेहूं काटते ही खेत की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए । ऐसे खतों में समय पर दो-तीन जुताई करके खेत को तैयार कर लें । गेहूँ की फसल की कटाई के बाद एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले (मोल्डबोर्ड) हल से कर 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करना लाभप्रद रहता है। मिट्टी पलटने वाले हल से पहली गहरी जुताई करना लाभप्रद है।
बुवाई का समय
बुवाई का उपयुक्त समय 1 मई से 20 मई है। साधारणतया मई माह में बुवाई कर सकते है । विशेष किस्मों में बीकानेरी नरमा की बुवाई का समय 15 अप्रेल से 5 मई तक है, परन्तु बुवाई मई के अंत तक भी की जा सकती है।
बीज उपचार
कपास के बीजों से रेशे हटाने के लिए जहां तक सम्भव हो व्यापारिक गंधक के तेजाब को प्रयोग करें | 10 किलो बीज के लिए 1 लीटर गंधक का तेजाब पर्याप्त होता है। मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में बीज डालकर थोड़ा गंधक का तेजाब डालिए तथा एक या दो मिनट लकड़ी से हिलायें । बाद में बीज को तुरन्त बहते हुए पानी में धो डाले और ऊपर तैरते हुए कच्चे बीज को अलग कर दीजिए।
बीज के अन्दर पाई जाने वाली गुलाबी लट की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार 4 से 40 किलो बीज को 3 ग्राम एल्युमिनियम फास्फाईड से कम से कम 24 घण्टे घूमित करें | यदि धूमित करना सम्भव नहीं हो तो बीज को तेज धूप में फैला कर कम से कम 6 घण्टे तक तपायें। रेशे रहित एक किलोग्राम नरमें के बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड (70 डब्ल्यू एस.) या 4 ग्राम थायोमिथोग्जाम (70 डब्ल्यू एस.) से उपचारित कर पत्ती रस चूसक हानिकारक कीट एवं पत्ती मरोड़ वायरस को कम किया जा सकता है। जीवाणु अंगमारी रोग की रोकथाम हेतु बोये जाने वाले प्रति बीघा बीज को एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन या 10 ग्राम प्लांटोमाईसीन दवा के (100 पी.पी. एम.सक्रिय तत्व) 1 लीटर पानी के घोल में 8-10 घण्टे भिगोयें । रेशे सहित बीज को दो घण्टे से अधिक नहीं भिगोयें ।
जड़ गलन
भूमि उपचार : जड़गलन की समस्या वाले खेतों में बुवाई से पूर्व 6 किलोग्राम व्यापारिक जिंक सल्फेट प्रति बीघा की दर से मिट्टी में डालकर मिला दें । जिन खेतों में जड़ गलन रोग का प्रकोप अधिक है, उन खेतों के लिए बुवाई के पूर्व 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम को 50 किलो आर्द्रता युक्त गोबर की खाद (एफ,वाई एम) में अच्छी तरह मिलाकर 10-15 दिनों के लिए छाया में रख दें । इस मिश्रण को बुवाई के समय एक बीघा में पलेवा करते समय मिट्टी में मिला दें ।
बीज की मात्रा एवं बुवाई
नरमें के लिए चार किलो प्रमाणित बीज प्रति बीघा डालना चाहिए, बीज लगभग 4-5 सेमी, की गहराई पर डालें । बुवाई कपास ड्रिल से 67 सेमी (सवा दो फुट) की दूरी पर कतारों में करें | आर.एस, 875 की बुवाई 60 सेमी. (दो फुट) की दूरी पर करें | संकर किस्म राज.एच एच, 6 (मरू विकास) की बुवाई बीज रोपकर (डिबिलिंग) करें | इसमें एक किलो प्रति बीघा की दर से बीज की आवश्यकता होगी | बीज की रोपाई 60 सेमी की दूरी पर करें | आर, एस. 875 की बीजाई के लिए छ: किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति बीघा की दर से प्रयोग करें । आर एस, 2013 व आर एस टी 9 किस्मों की फसल ज्यामिति यदि 67,5 सेमी पंक्ति से पंक्ति पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी या पंक्ति की दूरी 90 सेमी व पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी रखी जाये तो उनके उत्पादन पर कोई अन्तर नहीं आता है। अतः इन दोनों ही ज्यामितियों को सुविधानुसार अपनाया जा सकता है तथा कीट व व्याधियों का प्रकोप भी कम होता है ।
खाद व उर्वरक
मुख्य उर्वरक (नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश) सड़ी हुई गोबर की खाद का फसल चक्र में अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए | नरमें की फसल में गंगनहर क्षेत्र के लिए 20 किलो नत्रजन एवं भाखड़ा व इन्दिरा गांधी नहर क्षेत्रों में 25 किलो नत्रजन प्रति बीघा की दर से उपयोग करना चाहिए। फास्फोरस की मात्रा सम्पूर्ण जोन के लिए 10 किलो प्रति बीघा देनी चाहिए | नत्रजन की आधी मात्रा (भाखड़ा व इन्दिरा गांधी नहर क्षेत्रों में 28 किलो यूरिया एवं गंग नहर क्षेत्र में 22 किलो यूरिया) व फास्फोरस की मात्रा (62.5 किलो सिंगल सुपर फास्फेट) बुवाई के समय ड्रिल कर दें एवं साथ 5 किलो पोटाश प्रति बीघा देना चाहिए। बुवाई के समय नत्रजन उर्वरक नहीं प्रयोग किया जा सके तो इसे प्रथम सिंचाई के समय अवश्य दें। नत्रजन की शेष मात्रा कलियां बनते समय सिंचाई के समय दें ।संकर किस्म राज. एच.एच, 16 के लिए नत्रजन की मात्रा 37.5 किलो प्रति बीघा है, जिससे एक तिहाई अर्थात् 12.5 किलो (27.5 यूरिया) बुवाई के समय करें, तत्पश्चात् एक तिहाई मात्रा विरलीकरण (थिनिंग) के समय प्रथम सिंचाई के साथ व शेष मात्रा कलियां बनते समय सिंचाई के समय दें । फास्फोरस की पूरी मात्रा 10 किलोग्राम (62.5 किलो सिंगल सुपर फास्फेट) प्रति बीघा बुवाई के समय ड्रिल करें
सल्फर
अमेरिकन कपास आर,एस, 2013 मे यदि फास्फोरस डी.ए.पी. द्वारा देते हैं तो उसके साथ 150 किलो जिप्मम प्रति हैक्टर देवें | यदि फास्फोरस सिंगल सुपर फास्फेट द्वारा दे रहे हो तो जिप्सम देने की आवश्यकता नहीं है। नरमें की फसल में 2 टन गंगनहर क्षेत्र में 2 5 टन भाखड़ा व इन्दिरा गांधी नहर क्षेत्रों में (संकर किस्म के लिए 3.25 टन) प्रति बीघा गोबर की सड़ी हुई खाद बुवाई से 20-25 दिन पूर्व डालने पर नत्रजन की मात्रा में 50 प्रतिशत तक कटौती की जा सकती है।
ज़िंक
गेहूं व कपास फसल क्रम में जिन मृदाओं में मृदा परीक्षण के आधार पर जिंक तत्व की कमी निर्धारित ही गेहूं के बाद कपास में अधिक उपज प्राप्ति के लिए जिंक सल्फेट 3.0 किलोग्राम प्रति बीघा की दर से अन्तिम जुताई के समय भुरकाव द्वारा दिया जावे । जिन मृदाओं में जिंक की कमी हो मृदा परीक्षण के आधार पर निर्धारित हो तथा गेहूं में जिंक का प्रयोग न किया गया हो तो इस स्थिति में कपास में 6 किलो जिंक सल्फेट प्रति बीघा की दर से अंतिम जुताई से पूर्व सूखी मिट्टी में मिलाकर समान भुरकाव के साथ देना चाहिए। यदि बुवाई के समय जिंग सल्फेट नहीं दिया गया हो तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट के 2 छिड़काव पुष्पन तथा टिण्डा वृद्धि अवस्था पर करने से अधिक ऊपज ली जा सकती है।
निराई गुड़ाई
नरमें के खेत में खरपतवार नहीं पनपनें दें। इसके लिए निराई-गुड़ाई सामान्यतः पहली सिंचाई के बाद बतर आने पर कसिये से करनी चाहिए | इसके बाद आवश्यकतानुसार एक या दो बार त्रिफाली चलायें। रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डिमिथालीन (स्टाम्प 30) के 833 मिली या ट्राइफ्लूरालीन 48 ई सी, 780 मिली को 150 लीटर पानी में घोलकर प्रति बीघा की दर से फ्लेट फेन नोजल से उपचार करने से नरमें की फसल प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवार विहीन रहती है। इनका प्रयोग बिजाई से पूर्व मिट्टी पर छिड़काव भली-भांति मिलाकर करना चाहिए । प्रथम सिंचाई के बाद कसिये से एक बार गुड़ाई करना लाभदायक रहता है।
सिंचाई
नरमे के लिए पलेवा के अलावा 6 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन के बाद करें | बाद की सिंचाई 20-25 दिन के अन्तर पर करें। अन्तिम सिंचाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में करें । अगर पानी की कमी हो तो पांच सिंचाईयों से भी काम चल सकता है | इसके लिए पहली व दूसरी सिंचाई ऊपर बताये समय पर ही करें | इसके बाद तीसरी, चौथी व पांचवी सिंचाई एक माह के अन्तर पर करें | किस्म आर,एस.टी, 9 में प्रथम सिंचाई बुवाई के 50 दिन बाद भी कर सकते हैं, जिससे एक सिंचाई की बचत की जा सकती है। अमेरिकन कपास की किस्म आर एस, 2013 में 7 सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद तथा शेष 6 सिंचाईयां 15-20 दिन के अन्तराल पर करें । हाईब्रिड नरमा में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से सिफारिश किये गये नत्रजन तथा पोटाश (फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय) की मात्रा 6 बराबर भागों में दो सप्ताह के अन्तराल पर ड्रिप संयंत्र द्वारा देने से सतही सिंचाई की तुलना में ज्यादा उपयुक्त पायी गयी । इस पद्धति से पैदावार बढ़ने के साथ-साथ सिंचाई जल की
बचत, रूई की गुणवत्ता में बढ़ौतरी तथा कीड़ों के प्रकोप में भी कमी होती है । सिंचाई दी गई सारिणी के अनुसार एक दिन के अन्तराल पर बुवाई के दिन बाद से शुरू कर देंवे।
फूल व टिण्डों के गिरने की रोकथाम
स्वतः गिरने वाली पुष्प कलियों व टिण्डों को बचाने के लिए एसीमोन या प्लानोफिक्स का 2.5 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी में घोल बनाकर पहला छिड़काव कलियां बनते समय तथा दूसरा टिण्डों के बनना शुरू होते ही करना चाहिए।
रोग नियंत्रण :- ब्लेक आर्म
इस रोग की रोकथाम के लिए कीटनाशक दवाओं के छिड़काव करते समय निम्न दवाओं को प्रति 100 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें । 1. सट्रेप्टोसाईक्लिन 5-10 ग्राम या प्लाटोमाइसीन या पोसामाइसीन 50-100 ग्राम 2. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) 300 ग्राम
डिफोलिएसन नियंत्रण
नरमा/कपास की फसल में पूर्ण विकसित टिण्डे खिलने हेतु 50-60 प्रतिशत टिण्डे खिलने पर 50 ग्राम ड्राप अल्ट्रा को 150 लीटर पानी में घोल कर प्रति बीघा की दर से छिड़काव करने के 15 दिन के अन्दर करीब-करीब पूर्ण विकसित सभी टिण्डे खिल जाते हैं। ड्राप अल्ट्रा का प्रयोग करने का उपयुक्त समय 20 अक्टूबर से 15 नवम्बर है । इसके प्रयोग से कपास की पैदावार में वृद्धि पाई गई है। गेहूं की बिजाई भी समय पर की जा सकती है।
जिन क्षेत्रों में कपास की फसल अधिक वानस्पतिक बढ़वार करती है, वहां पर फसल की अधिक बढ़वार रोकने के लिए बिजाई 90 दिन उपरान्त वृद्धि नियामक (ग्रोथ रेगूलेटर) रसायन लियोसीन का 100 लीटर पानी में 5 मिलीलीटर की दर से मिलाकर एक छिड़काव करें । नरमें की किस्म आरएस-875 में बुवाई के 35 दिन डिटोपिंग करने पर पैदावार में वृद्धि!
नरमे की चुनाई
प्रथम चुनाई 50 से 60 प्रतिशत टिण्डे खिलने पर शुरू करें एवं दूसरी चुनाई शेष टिण्डों के खिलने पर करें
छट्टियों की कटाई
नरमा चुनने के बाद छट्टियों की कटाई यथा शीघ्र करें तथा खेत से दूर हटा देंवे । इस प्रक्रिया से अगले वर्ष कीटों का प्रकोप कम किया जा सकता है। अमेरिकन कपास की उपज उन्नत कृषि विधियों द्वारा अमेरिकन कपास की उपज 5-6 क्विंटल प्रति बीघा ली जा सकती है। हाईब्रिड (संकर) किस्म की उपज 7 से 8 क्विंटल प्रति बीघा ली जा सकती है।